राहुल शर्मा इंदौर ब्यूरो …. धार के भोजशाला में मौजूद मंदिर को लेकर एक याचिका दायर की गई है । बता दें कि इसको लेकर काफी दिनों से याचिका इंदौर हाईकोर्ट के समक्ष रखी हुई थी, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है…..

धार में भोजशाला मंदिर का विवाद काफी सालों से चला आ रहा है । इस पूरे विवाद को लेकर हिंदू पक्ष ने याचिका इंदौर हाई कोर्ट में दायर की है । याचिका के माध्यम से यह बात कोर्ट के समक्ष रखी गई कि वह मंदिर परिसर हिंदुओं को पूर्ण रूप से दे दिया जाए । साथ ही मंदिर परिसर के अंदर जिस तरह से मुसलमान नमाज पढ़ रहे हैं, उन्हें रोका जाए । न्यायालय ने याचिका स्वीकार कर संबंधित पक्षकारों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है । बता दें कि इंदौर हाई कोर्ट ने भारत सरकार के पुरातत्व विभाग, कमाल मौला सोसाइटी को नोटिस जारी किए हैं । याचिका में भोजशाला की 33 फोटो दाखिल की गई हैं । इसमें देवी देवताओं के चित्र व संस्कृत के श्लोक लिखे हुए हैं ।

याचिका में वाग देवी की प्रतिमा जोकि लंदन स्थित संग्रहालय में रखी हुई है । उसे वापस लाने की भी मांग की गई है । इस बारे में याचिकाकर्ता अंजना अग्निहोत्री ने बताया कि न्यायालय ने याचिका को स्वीकार कर संबंधित को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है । बता दें कि अब आगे आने वाले दिनों में कोर्ट में क्या जवाब पेश किया जाता है।

क्या है विवाद ….
परमार वंश के राजा भोज ने 1010 से 1055 ईस्वी तक शासन किया था। 1034 में उन्होंने सरस्वती सदन की स्थापना की थी। यह एक महाविद्यालय था जो बाद में भोजशाला के नाम से मशहूर हुआ। राजा भोज के शासनकाल में ही यहां मां सरस्वती की प्रतिमा स्थापित की गई थी। इतिहासकारों के मुताबिक साल 1875 में खुदाई के दौरान यह प्रतिमा यहां मिली थी। 1880 में अंग्रेजों का पॉलिटिकल एजेंट मेजर किनकेड इसे लेकर इंग्लैंड चला गया था। यह वर्तमान में लंदन के संग्रहालय में सुरक्षित भी है।

1305 से 1401 के बीच अलाउद्दीन खिलजी और दिलावर खां गौरी की सेनाओं के साथ माहकदेव और गोगादेव की लड़ाई हुई। 1456 में महमूद खिलजी ने मौलाना कमालुद्दीन के मकबरे और दरगाह का निर्माण कराया। करीब एक हजार साल पहले भोजशाला शिक्षा का एक बड़ा संस्थान था। बाद में यहां पर राजवंश काल में मुस्लिम समाज को नमाज के लिए अनुमति दी गई, क्योंकि यह इमारत अनुपयोगी पड़ी थी। वे लंबे समय से यहां नमाज अदा करते रहे। हिंदुओं का दावा है कि भोजशाला सरस्वती का मंदिर है। दूसरी ओर मुस्लिम इसे कमाल मौलाना की दरगाह बताते हैं।