अर्विन्द चौकसे देवास ब्यूरो – खेती का लाभ का धंदा बनाने के वादे सरकार काफी करती है पर जमीनी हकीकत क्या है ये देखने को मिलता है देवास में , जहां एक बेटी हल में बेल की जगह लगती है और माँ हल चलाती है खेती ऐसे बनेगा क्या लाभ का धंदा ? …
देवास जिले के कन्नौद क्षेत्र के कुसमानिया-दीपगांव मार्ग स्थित ग्राम भिलाई के पठार पर इस प्रकार का नजारा इस मार्ग से निकलने वाले राहगीरों को देखने को मिल जाता है । ऐसा ही एक मामला कन्नौद तहसील के ग्राम भिलाई में देखने को मिलता है जहां अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए माँ-बेटी मिलकर डोरे चला रही है । अपनी फसल में उगे अनावश्यक घास के लिए बेटी बनी बैल और माँ डोरे को संभाल रही है ।पठार में आदिवासी एवं अन्य परिवार रहते हैं । इन्ही में से एक परिवार है कारीबाई का। कारीबाई पति हरदास बारेला अपनी 4 एकड़ कृषि भूमि में मक्का एवं मूमफली उगाकर परिवार का पालन पोषण करती हैं । 3 साल पहले एक सड़क हादसे में उनके पति हरदास और बेटे संतोष की मौत हो गई । तब से ये अपना परिवार पालने के लिए खेती और मजदूरी कर रही है । बूढ़ी सास और छोटे- छोटे चार बच्चों का पेट भरने के लिए आदिवासी महिला नर हिम्मत नही हारी और मजबूत इरादों से खेत मे काम करना शुरू किया। कारीबाई ने बताया कि उनकी बड़ी बेटी कृष्णा स्कूल नही जाती घर और खेत के काम मे उनकी मदद करती है । कृषि को लाभ का धंधा बनाने के लिए सरकार द्वारा जोर दिया जाता है और किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लिए कृषि उपकरणों एवं खाद-बीज भी अनुदान पर दिया जाता है लेकिन जमीनी स्तर पर ये योजनाएं कितनी पात्र हितग्राहियो तक पहुंचती है ये बताना मुश्किल है। सरकार की योजना का लाभ मिले या न मिले। फिर भी किसान को अपने परिवार का पालन पोषण करने के लिए खेती तो करनी पड़ती है ।
कृषि विभाग इस परिवार को किस तरह मदद देता है ये देखने वाली बात है ।