के के दुबे ग्वालियर विरासत
ग्वालियर में मौजूद ग्वालियर किले का निर्माण 8वीं शताब्दी में किया गया था. तीन वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैले इस किले की ऊंचाई 35 फीट है. यह किला मध्यकालीन स्थापत्य के अद्भुत नमूनों में से एक है. यह ग्वालियर शहर का प्रमुख स्मारक है जो गोपांचल नामक छोटी पहाड़ी पर स्थित है. लाल बलुए पत्थर से निर्मित यह किला देश के सबसे बड़े किले में से एक है और इसका भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान है.
बहुत समृद्ध है ग्वालियर के किले का इतिहास
इतिहासकारों के दर्ज आंकड़े में इस किले का निर्माण सन 727 ईस्वी में सूर्यसेन नामक एक स्थानीय सरदार ने किया जो इस किले से 12 किलोमीटर दूर सिंहोनिया गांव का रहने वाला था. इस किले पर कई राजपूत राजाओं ने राज किया है. किले की स्थापना के बाद करीब 989 सालों तक इसपर पाल वंश ने राज किया. इसके बाद इसपर प्रतिहार वंश ने राज किया. 1023 ईस्वी में मोहम्मद गजनी ने इस किले पर आक्रमण किया लेकिन उसे हार का सामना करना पड़ा. 1196 ईस्वी में लंबे घेराबंदी के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने इस किले को अपनी अधीन किया लेकिन 1211 ईस्वी में उसे हार का सामना करना पड़ा. फिर 1231 ईस्वी में गुलाम वंश के संस्थापक इल्तुतमिश ने इसे अपने अधीन किया.
इसके बाद महाराजा देववरम ने ग्वालियर पर तोमर राज्य की स्थापना की. इस वंश के सबसे प्रसिद्ध राजा थे मानसिंह (1486-1516) जिन्होंने अपनी पत्नी मृगनयनी के लिए गुजारी महल बनवाया. 1398 से 1505 ईस्वी तक इस किले पर तोमर वंश का राज रहा.
मानसिंह ने इस दौरान इब्राहिम लोदी की अधीनता स्वीकार ली थी. लोदी की मौत के बाद जब मानसिंह के बेटे विक्रमादित्य को हुमायूं ने दिल्ली दरबार में बुलाया तो उन्होंने आने से इंकार कर दिया. इसके बाद बाबर ने ग्वालियर पर हमला कर इसे अपने कब्जे में लिया और इसपर राज किया. लेकिन शेरशाह सूरी ने बाबर के बेटे हुमायूं को हराकर इस किले को सूरी वंश के अधीन किया. शेरशाह की मौत के बाद 1540 में उनके बेटे इस्लाम शाह ने कुछ समय के लिए अपनी राजधानी दिल्ली से बदलकर ग्वालियर कर दिया. इस्लाम शाह की मौत के बाद उनके उत्तराधिकारी आदिल शाह सूरी ने ग्वालियर की रक्षा का जिम्मा हेम चंद्र विक्रमादित्य (हेमू) को सौंप खुद चुनार चले गए. हेमू ने इसके बाद कई विद्रोहों का दमन करते हुए कुल 1553-56 के बीच 22 लड़ाईयां जीतीं. 1556 में हेमू ने ही पानीपत की दूसरी लड़ाई में आगरा और दिल्ली में अकबर को हराकर हिंदू राज की स्थापना की. इसके बाद हेमू ने अपनी राजधानी बदलकर वापस दिल्ली कर दी और पुराना किला से राज करने लगा.
इसके बाद अकबर ने ग्वालियर के किले पर आक्रमण कर इसे अपने कब्जे में लिया और इसे कारागर में तब्दील कर दिया गया. मुगल वंश के बाद इसपर राणा और जाटों का राज रहा फिर इस पर मराठों ने अपनी पताका फहराई.
1736 में जाट राजा महाराजा भीम सिंह राणा ने इस पर अपना आधिपत्य जमाया और 1756 तक इसे अपने अधीन रखा. 1779 में सिंधिया कुल के मराठा छत्रप ने इसे जीता और किले में सेना तैनात कर दी. लेकिन इसे ईस्ट इंडिया कंपनी ने छीन लिया. फिर 1780 में इसका नियंत्रण गौंड राणा छत्तर सिंह के पास गया जिन्होंने मराठों से इसे छीना. इसके बाद 1784 में महादजी सिंधिया ने इसे वापस हासिल किया. 1804 और 1844 के बीच इस किले पर अंग्रेजों और सिंधिया के बीच नियंत्रण बदलता रहा. हालांकि जनवरी 1844 में महाराजपुर की लड़ाई के बाद यह किला अंततः सिंधिया के कब्जे में आ गया.
1 जून 1858 को रानी लक्ष्मीबाई ने मराठा विद्रोहियों के साथ मिलकर इस किले पर कब्जा किया. लेकिन इस जीत के जश्न में व्यस्त विद्रोहियों पर 16 जून को जनरल ह्यूज के नेतृत्व वाली ब्रिटिश सेना ने हमला कर दिया. रानी लक्ष्मीबाई खूब लड़ीं और अंग्रेजों को किले पर कब्जा नहीं करने दिया. लेकिन इस दौरान उन्हें गोली लग गई और अगले दिन (17 जून को) ही उनकी मृत्यु हो गई. भारतीय इतिहास में यह ग्वालियर की लड़ाई के नाम से वर्णित है. लक्ष्मीबाई की मृत्यु के बाद अग्रेजों ने अगले तीन दिन में ही किले पर कब्जा कर लिया.
किले में क्या देखें
किला और इसकी चाहरदीवारी का बहुत अच्छे तरीके से देखभाल किया जा रहा है. इसमें कई ऐतिहासिक स्मारक, बुद्ध और जैन मंदिर, महल (गुजारी महल, मानसिंह महल, जहांगीर महल, करण महल, शाहजहां महल) मौजूद हैं.
किला मुख्यतः दो भाग में बंटा है. मुख्य किला और महल (गुजारी महल और मान मंदिर महल). इन किलों का निर्माण राजा मान सिंह ने करवाया था. गुजारी महल का निर्माण उन्होंने अपनी प्रिय रानी मृगनयनी के लिए करवाया था. अब गुजारी महल को पुरातात्विक संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया है. इस संग्रहालय में दुर्लभ मूर्तियां रखी गई हैं जो पहली ईस्वी की हैं. ये मूर्तियां यहीं के आसपास के इलाकों से प्राप्त हुई हैं.
इसके अलावा आप यहां तेली का मंदिर, 10वीं सदी में बना सहस्त्रबाहु मंदिर, भीम सिंह की छतरी और सिंधिया स्कूल देख सकते हैं.
किले तक कैसे पहुंचें
इस किले तक पहुंचने के लिये दो रास्ते हैं. एक ग्वालियर गेट कहलाता है जिसपर केवल पैदल ही जाया जा सकता है. जबकि दूसरे रास्ते ऊरवाई गेट पर आप गाड़ी से भी जा सकते हैं. यह किला 350 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. किले का मुख्य प्रवेश द्वार हाथी पुल के नाम से जाना जाता है जो सीधा मान मंदिर महल की ओर ले जाता है.
कैसे पहुंचें ग्वालियर
हवाई मार्ग से ग्वालियर के लिए दिल्ली, भोपाल, इंदौर तथा मुंबई से नियमित उड़ाने मौजूद हैं. और यह रेल मार्ग से भी देश के प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है.
महत्वपूर्ण शहरों से दूरी
नई दिल्लीः 327 किलोमीटर
भोपालः 430 किलोमीटर
मुंबईः 1080 किलोमीटर
चेन्नईः 1867 किलोमीटर
कोलकाताः 1261 किलोमीटर