नीलेंद्र मिश्रा भोपाल ब्यूरो – पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों की मौतों के पीछे पार्क में शिकारियों का सक्रिय होना है , हाल ही में हुए एक बाघ की मौत के बाद पीएम रिपोर्ट में बड़ा खुलाशा हुआ है , बाघ का शिकार किया गया था , प्रबंधन ने एसटीएफ से जाँच की बात कही है ….
बीते दिनों पन्ना टाइगर रिजर्व में वयस्क नर बाघ की मौत व सिर काटे जाने की दुर्भाग्यपूर्ण घटना सामने आई थी । बाघ संरक्षण के मामले में अभी तक देश और दुनिया में पन्ना टाइगर रिजर्व की सराहना करते हुए मिसाल दी जाती रही है लेकिन इस घटना ने वन्यजीव प्रेमियों को हिलाकर रख दिया है तथा इस घटना को प्रबंधन की नाकामी के रूप में देखा जा रहा है । क्षेत्र संचालक केएस भदौरिया द्वारा दस अगस्त 2020 को प्रेस नोट जारी करते हुए बताया गया था कि विगत एक माह पूर्व सात अगस्त को वन परिक्षेत्र गहरीघाट के बीट झालर में सकरा नामक स्थान पर बाघ पी-123 व बाघ पी-431 के बीच हुए संघर्ष में पी-123 जख्मी होकर नदी में गिर गया था। जिसका सिर कटा शव तीसरे दिन घटना स्थल से आठ किमी दूर पठाई कैंप के पास नदी में तैरता मिलता है । पोस्टमार्टम रिपोर्ट से स्पष्ट हो चुका है कि मौत के बाद बाघ का सिर धारदार हथियार से काटा गया है । लेकिन घटना के एक माह गुजरने के बाद भी पार्क प्रबंधन आरोपितों तक पहुंचने में कामयाब नहीं हो सका। यह मामला मीडिया में जब चर्चा का विषय बना तो प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्य प्राणी मप्र द्वारा जांच के आदेश दिए गए और बकायदा टीम गठित की गई । यह टीम विगत चार सितंबर से पन्ना टाइगर रिजर्व में है , जिससे उम्मीद की जा रही है कि मामले के आरोपितों को पकड़ा जा सकेगा।
पन्ना टाइगर रिजर्व में बीते आठ माह में पांच बाघों की हुई संदिग्ध परिस्थितियों में मौत –
पन्ना टाइगर रिजर्व में मौजूदा समय में हालात सामान्य नहीं हैं । यहां बीते आठ माह के दौरान पांच बाघों की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो चुकी है। इन बाघों की मौत के कारणों की असल वजह का खुलासा अभी तक नहीं हो सका है। सबसे ज्यादा चिंताजनक बात आठ वर्षीय वयस्क नर बाघ पी-123 की है। जिस तरह से इस बाघ की मौत हुई और मौत के तीन दिन बाद सिर कटा शव केन नदी में बहता हुआ मिला वह सवालों को जन्म देता है। पार्क प्रबंधन ने इसे आपसी संघर्ष तथा सिर विहीन बाघ का शव मिलने पर इसे केन नदी में मगर द्वारा खाया जाना बताया था । पार्क प्रबंधन की यह दलील घटना के एक माह बीत जाने के बाद भी किसी के गले नहीं उतर रही है। बाघ पी-123 की मौत को लेकर जो सवाल दस अगस्त को नदी में पाए जाने पर उठाए गए थे वे आज भी बने हुए हैं ।
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