ललित साहू छिंदवाड़ा ब्यूरो – मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र की सीमा पर बसे पांढुर्णा के गोटमार मेला मां चंडी की पूजा अर्चना के बाद शुरू हो गया। जाम नदी के बीच एक तरफ सावरगांव तो दूसरी तरफ पांढुर्णा है दोनों पक्ष परंपरा निभाने के नाम पर आज पत्थर मार खेल खेलेंते हैं …[rev_slider alias=”small_ad”]
छिंदवाड़ा प्रेमी प्रेमिका की याद में हर वर्ष भादो मास के कृष्ण पक्ष में अमावस्या पोला त्योहार के दूसरे दिन पांढुर्णा और सावरगांव के बीच बहने वाली जाम नदी में वृक्ष की स्थापना कर पूजा अर्चना कर नदी के दोनों ओर बड़ी संख्या में लोग एकत्र होते हैं और सूर्योदय से सूर्यास्त तक पत्थर मारकर एक-दूसरे का लहू बहाते हैं। इस घटना में कई लोग घायल हो जाते हैं ।
300 साल पुरानी परंपरा – सावरगांव की एक आदिवासी कन्या का पांढुर्णा के किसी लड़के से प्रेम हो गया था। दोनों ने चोरी छिपे प्रेम विवाह कर लिया। पांढुर्णा का लड़का साथियों के साथ सावरगांव जाकर लड़की को भगाकर अपने साथ ले जा रहा था। उस समय जाम नदी पर पुल नहीं था। नदी में गर्दन भर पानी रहता था, जिसे तैरकर या किसी की पीठ पर बैठकर पार किया जा सकता था और जब लड़का, लड़की को लेकर नदी से जा रहा था तब सावरगांव के लोगों को पता चला और उन्होंने लड़के व उसके साथियों पर पत्थरों से हमला शुरू किया। जानकारी मिलने पर पहुंचे पांढुर्णा पक्ष के लोगों ने भी जवाब में पथराव शुरू कर दी। पांर्ढुना और सावरगां के बीच इस पत्थरों की बौछारों से इन दोनों प्रेमियों की मृत्यु जाम नदी के बीच ही हो गई। दोनों प्रेमियों की मृत्यु के पश्चात दोनों पक्षों के लोगों को अपनी शर्मिंदगी का एहसास हुआ और दोनों प्रेमियों के शवों को उठाकर किले पर माँ चंडिका के दरबार में ले जाकर रखा और पूजा-अर्चना करने के बाद तब पास के चंडी देवी मंदिर ले गए देवी ने दोनों को जीवित कर दिया । किदवंती है इसको को निभाने के लिए पांढुर्णा की जाम नदी पर सावरगांव और पांढुर्णा के लोग एकत्रित होते हैं जाम नदी के बीच में पलाश के झंडा गाड़ दिया जाता है । इस मेले के लिए पुलिस और प्रशासन काफी इंतज़ाम करता है। पत्थर लगने से लोग घायल हो जाते हैं । कई बार मौत तक हो जाती है। मौके पर एंबुलेंस और डॉक्टर सब तैनात रहते हैं। देश का यह पहला मेला है जिसमें पुलिस और प्रशासन की मौजूदगी में लोग एक दूसरे पर पत्थर बरसाते हैं। पांढुर्णा के लोग मानते हैं कि जो घायल होता है उसे मां चंडी का प्रसाद मिलता है। लंबे समय से चल रहे इस मेले में शराब पर पूरी तरह प्रतिबंध है। इसके बावजूद मेले के दौरान शराब की खुलेआम बिक्री होती है और लोग छुपकर पीते हैं। सुबह 9:00 बजे से गोटमार कि परंपरा आरंभ हुई जिसमें जिसमें जिला प्रशासन ने घायलों की संख्या को कम करने और घायलों के उपचार करने के लिए व्यवस्था करके रखी थी 4 अस्थाई अस्पतालों बनाए गए थे लगभग 10:00 बजे से लोगों ने चंडी मां की पूजा करने के बाद एक दूसरे पर पत्थर बरसाना शुरू कर दिया नदी के बीच में स्थित झंडे को तोड़ने के लिए सावरगांव और पांढुर्ना के लोगों ने तेजी पथतर बाजी शुरू की वे झंडा तोड़ सके प्रयास किये और शाम 5:30 बजे लगभग पांढुर्ना के पक्ष में झंडे को तोड़ लिया दिन भर चले इस गोटमार मेले में लगभग 330 लोग घायल हुए बड़ी बात यह रहेगी इस बार कोई भी गंभीर रूप से घायल नहीं हुआ जिला प्रशासन ने गोफन न चले इसके लिए ड्रोन सीसीटीवी कैमरे लगाए हुए थे और गोफन चलाने वाले दिखने पर आपराधिक मामला दर्ज करने की बात रखी थी।
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