शिवराज क्या मप्र के मुख्य मंत्री नहीं रह पाएंगे ?
नीलेंद्र मिश्रा भोपाल ब्यूरो – मप्र की राजनीती से जुड़ा एक मिथक है जिसके चलते ये कहा जाता रहा है कि जो भी बतौर मुख्यमंत्री यहां आया है उसकी कुर्सी जानी तय है अब तक तो ये ही होता आ रहा है …
मध्य प्रदेश की सत्ता से जुड़ा एक मिथक आज भी सत्ता के गिलयारों में चर्चाओं का विषय है । प्रदेश के मुख्य मंत्री के पद पर रहते हुए जो भी यहां आया उसकी कुर्सी जानी तय है । अब तक जो हुआ है उससे ये कयास लगने लगे है कि अब प्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री नहीं रह पाएंगे । ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि जो भी मुख्य मंत्री रहते यहां आया उसकी कुर्सी ज्यादा समय तक नहीं बच सकी । अब तक के प्रदेश के 10 ऐसे मुख्यमंत्री रहे जिनकी कुर्सी यहां आने के बाद साल खत्म होते होते चली गई । चाहे वो दिग्विजय सिंह हों या सुंदरलाल पटवा चलिए … आपको बताते हैं माजरा क्या है …
मध्य प्रदेश के इतिहास में ये मिथक आज भी कायम है कि पिछले 17 सालों में कोई भी मुख्य मंत्री प्रदेश के अशोक नगर नहीं जा पाए । अशोक नगर को लेकर एक मिथक है कि जो भी मुख्य मंत्री यहां आया उसकी कुर्सी चली गई । सन 1963 , 1967 , 1969 , 1975 , 1977 , 1980 , 1985 , 1988 , 1992 , 2003 ये वो साल हैं जिनमे मप्र के तत्कालीन मुख्यमंत्रियों की कुर्सियां जा चुकी हैं ।
साल 1963 में 1963 में भगवंत राव मंडलोई, 1967 में द्वारका प्रसाद मिश्रा, 1969 में गोविंद नारायण सिंह, 1975 में प्रकाश चंद्र सेठी 1977 में श्यामा चरण शुक्ल 1980 में वीरेंद्र कुमार सकलेचा 1985 में अर्जुन सिंह 1988 में मोतीलाल वोरा , 1992 में सुंदरलाल पटवा 2003 में दिग्विजय सिंह अशोक नगर गए थे जिनकी कुर्सी नहीं बच सकी ।
1975 में मप्र के मुख्यमंत्री रहे प्रकाश चंद्र सेठी अशोकनगर पार्टी के अधिवेशन में गए थे जिनको साल जाते जाते दिसंबर में कुर्सी गवानी पड़ी ।
1977 में मुख्य मंत्री श्यामा चरण शुक्ला अशोक नगर में तुलसी सरोवर का लोकार्पण करने पहुंचे थे । 29 मार्च 1977 को राष्ट्रपति शासन लगा और मुख्य मंत्री श्यामा चरण शुक्ला ने अपना पद छोड़ा ।
1985 में मुख्य मंत्री अर्जुन सिंह प्रधानमंत्री राजीव गांधी के दोरे के चलते अशोक नगर गए रहे राजीव गाँधी के साथ । जिसके बाद अर्जुन सिंह अपनी कुर्सी नहीं बचा सके ।
1988 में मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा ने रेलवे स्टेशन के फुट ओवरब्रिज के उद्घाटन के लिए रेलमंत्री माधवराव सिंधिया के साथ अशोक नगर पहुंचे थे । इसी साल मोतीलाल बोरा की कुर्सी चली गई ।
1992 में मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा शामिल हुए । इसी साल अयोध्या के विवादित ढांचे को ढहाया गया था जिसके कारण भाजपा शासित राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया और सुंदरलाल पटवा को हटना पडा ।
2003 में मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का नाम भी इस लिस्ट में जुड़ गया । दिग्विजय सिंह ही अब तक के एकलौते ऐसे मुख्य मंत्री रहे जिन्हे अशोक नगर से लौटने के दो साल कुर्सी का सुख मिल सका । मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह साल 2001 में माधवराव सिंधिया के बाद खाली हुई सीट पर ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए प्रचार करने जा पहुंचे थे जिसका खामियाजा उन्हें साल 2003 में मिला ।
अब क्या मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के साथ भी कुछ ऐसा ही होगा
मुख्य मंत्री शिवराज सिंह वैसे तो अब तक हुए अशोक नगर के इतिहास से वाकिफ है । अशोक नगर में इसी साल उप चुनाव हैं जिसके चलते मुख्य मंत्री शिवराज सिंह आज अशोक नगर के दौरे पर रहे । जिले की दो विधान सभा में जजपाल सिंह जज्जी और मुंगावली से मंत्री बृजेंद्र सिंह यादव भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी हैं । हाल ही में कांग्रेस से भारतीय जनता पार्टी में आये इन दोनों नेताओं को भारतीय जनता पार्टी ने अपना प्रत्याशी बनाया है । जिनके प्रचार के लिए आज मुख्य मंत्री अशोक नगर पहुंचे थे ।
क्या शिवराज को गवानी पड़ सकती है कुर्सी … ?
मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आज अशोक नगर जिले में चुनाव प्रचार किया है । राजनैतिक गलियारों में मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं कि अशोक नगर के इतिहास में उनका नाम भी जुड़ सकता है ।