[rev_slider alias=”small_ad”] रूद्र प्रताप सिंह होशंगाबाद ब्यूरो – इंग्लैंड में होने जा रही कॉमनवेल्थ पैरा जूडो चैंपियनशिप में 48 किलोग्राम जूनियर वर्ग में होशंगाबाद की दृष्टिहीन सरिता चौरे देश का प्रतिनिधित्व करेंगी…होशंगाबाद के पांजराकलां गांव की रहने वाली सरिता चौरे बेहद गरीब परिवार से आती हैं. वह बचपन से ही दृष्टिबाधित हे। लेकिन जुनून ऐसा कि आगामी सितंबर माह में इंग्लैंड में होने जा रही कॉमनवेल्थ पैरा जूडो चैंपियनशिप में 48 किलोग्राम जूनियर वर्ग में वो देश का प्रतिनिधित्व करेंगी। । सरिता का कहना है कि बचपन से ही उनका सपना जूडो में अपना भविष्य बनाने का रहा है. उन्हें पता लगा कि होशंगाबाद के सुहागपुर तहसील में एक समाजसेवी संस्था दृष्टिबाधित बच्चों को जूडो का प्रशिक्षण देती हैं. फिर क्या था सरिता ने भी संस्था से जुड़कर जूडो की ट्रैनिंग शुरू कर दी. स्टेट लेवल चैंपियनशिप में दमखम दिखाने के साथ ही उन्होंने गोरखपुर में राष्ट्रीय स्पर्धा 48 किग्रा वर्ग में रजत जीत भारतीय टीम में जगह बनाई। तीनों बहनें दृष्टिहीन, लेकिन तीनों खिलाड़ी हे। सरिता ने बताया कि वह जन्म से ही दृष्टिहीन है। दो और बहनें भी देख नहीं सकतीं। घर के हालात ऐसे नहीं कि बेटियों का महंगा इलाज करवा सकें। मगर इन बहनों ने हिम्मत नहीं हारीं।तीनों बहन शहर के माता जीजाबाई शासकीय कॉलेज में बीए द्वितीय वर्ष में पढ़ाई कर रही हैं। दोनों बहनें पूजा और ज्योति भी जूडो खेलती हैं।
गांव में जश्न का माहौल .. सरिता के पिता लखन लाल चौरे बताते हैं कि बेटियों का जन्म हुआ तो क्या-क्या नहीं सुना और सहा, लेकिन आज हमारे घर और गांव में उत्साह का माहौल है। मां कृष्णा बताती हैं कि बेटियां जब स्कूल में थीं तो कभी चाचा तो कभी पापा स्कूल छोड़ने जाते थे। हम हमेशा डर और तकलीफों में जिए। जब से बेटियों ने मैडल जीते तो आज बेटियों के कारण गांव का नाम रोशन हो रहा है। चौरे समाज के सचिव जयनारायण पटेल बताते हैं कि समाज ने तीन दिन में पैसे जुटा लिए, क्योंकि बेटी गांव का गौरव बन चुकी है।
मप्र को दिलाए 7 गोल्ड ,13 सिल्वर ,14 ब्रांज …. साइट सेवर मप्र की डायरेक्टर अर्चना भंबल बताती हैं कि हमने तो बच्चियों को सुरक्षा की दृष्टि से इस ट्रेनिंग की शुरुआत की थी लेकिन इन बच्चियों ने बदले में हमारी झोली मैडल से भर दी। पिछले तीन साल में ये लड़कियां सीनियर और जूनियर वर्ग में कुल 7 गोल्ड ,13 सिल्वर और 14 ब्रांज जीत चुकी हैं। इसी साल फरवरी में गोरखपुर में हुई नेशनल प्रतियोगिता में भी इन लड़कियों ने 5 सिल्वर और 4 ब्रांज मेडल जीते हैं।
इंग्लैंड भेजने के लिए गांव व समाज ने जुटाए सवा लाख रुपए .. भाई दीपेश ने बताया कि पिता लखनलाल मजदूरी करते हैं। हमारी खराब आर्थिक स्थिति के कारण कुर्मी समाज और गांव के लोगों ने मदद की। कुछ पैसा हमारे पास था। सब मिलाकर हमने सवा लाख रुपए इकट्ठे किए।
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