शेलेन्द्र विश्वकर्मा सीहोर ब्यूरो – देश के चार स्वयंभू गणेश पीठ में सम्मिलित सीहोर का प्राचीन सिद्ध विनायक गणेश मंदिर लगभग 3 सौ वर्ष पुराना माना जाता है , कहते हैं यहां उल्टा स्वस्तिक बनाने से होती है हर मनोकामना पूरी …. [rev_slider alias=”small_ad”]
सीहोर के पश्चमी – उत्तर छोर पर स्थित यह मंदिर देश और विदेश में सुविख्यात है । प्राचीन सिद्ध विनायक गणेश मंदिर में विराजे भगवान गणेश की सूॅड बाॅयी ओर होने से यह सिद्ध और स्वयंभू कहलातें हैं । वर्ष भर देश और प्रदेश के विभिन्न प्रान्तों से आए श्रद्धालु यहाँ आस्था , श्रद्धा और भक्ति की त्रिवेणी में अपनी अपनी मनौति मांगने आते है । यही नही भक्तगण मंदिर के पार्श्व भाग में उल्टा स्वास्तिक बनाकर अपनी विशिष्ट मनौती भी भगवान के श्री चरणों में लगाना नही भूलते हैं ।
स्वयंभू गणेश की सिद्ध प्रतिमाए देश के चार स्थानों पर विराजी मानी जाती है । इनमें राजस्थान के सवाई माधोपुर के रणथम्बौर , उज्जैन में अवन्तिका ,गुजरात में सिद्धपुर तथा सीहोर के प्राचीन सिद्ध विनायक गणेश मंदिर चौथा स्वंयभू पीठ माना जाता है ।
इस प्राचीन सिद्ध विनायक गणेश मंदिर निर्माण बाजीराव पेशवा ने करवाया था ।
यूँ तो रिद्धि – सिद्धि के दाता भगवान श्री गणेश भक्तो की मनोकानमा पूर्ण करने वाले माने जाते है । लेकिन इस प्राचीन मंदिर में भक्तगण एक अनूठे अंदाज में अपनी मनोकामना के लिए अरदास लगाते है । इसके लिए इस मंदिर के गर्भ गृह के एकदम पीछे पार्श्व भाग में बने एक विशिष्ट स्थान पर सिंदूर से उल्टा स्वस्तिक निशान बनाते है और जब उनकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है तो वह वापस मंदिर आकर एक सीधा स्वास्तिक चिन्ह बनाते है दरअसल गजकर्ण बड़े होते है और वह जब खुले होते है तो एकदम पीछे जाकर खुलते है । इसलिए भक्तगण पीछे जाकर इन कर्ण पर उल्टा स्वास्तिक बनाते है ।लजब भगवान की आँखों के सामने पीछे से गजकर्ण आते है तो उल्टा स्वास्तिक भगवान् को सीधा दिखाई पड़ता है । इस प्रकार यहां मनोकामना जल्द पूर्ण हो जाती है ।
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