आशीष रावत…..हरदा जिले के छिपावड़ में अनोखा स्कूल है, जिसमें पढ़ने वाले विद्यार्थी आज भी गांधी टोपी पहनते हैं…..

हरदा जिले में एक स्कूल में आज भी बच्चे गाँधी टोपी पहनते है। हरदा जिले के छिपावड गांव में स्थित इस शासकीय स्कूल की शुरुआत 1 जनवरी 1892 को हुई थी। इसकी विशेषता है की 131 वर्ष पुराने इस स्कूल में पढ़ने वाले छात्र से लेकर आज तक पढ़ रहे सभी छात्रों का रिकॉर्ड सुरक्षित रखा है। ऐसा बताया जाता है की आजादी की लड़ाई के दौरान खुद गांधीजी हरदा आये थे। उस समय यहां गांधीजी ने चरखा चलाया था।

इस स्कूल में आज भी गांधीजी की परंपराओं को संजोया जा रहा है। स्कूल के छात्रों का कहना है की उन्हें गांधी टोपी पहनने से गर्व महसूस होता है। साथ ही गांधीजी के आदर्शो पर चलने की प्रेरणा मिलती है। पूरे संभाग में इसे गांधी टोपीवाले स्कूल के नाम से पहचाना जाता है। हालांकि स्कूल में एडमिशन लेने वाले बच्चो की संख्या साल दर साल कम होती जा रही है। लेकिन स्कूल प्रबंधन और बच्चों का कहना है कि वो गांधीजी की परम्परा को जीवंत रखेंगे।

स्कूल में बुनियादी शिक्षा पर जोर….
इस स्कूल में शुरुआत से ही पढ़ाई के साथ-साथ ही बच्चों को बुनियादी शिक्षा पर भी जोर दिया जाता है। तब से इस ही स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को पढ़ाई के साथ जीवनयापन के लिए बुनियादी शिक्षा देने की परंपरा है। समय और जरूरत के हिसाब के कुछ परंपराएं कम हुईं हैं, लेकिन स्कूल की शिक्षिका बताती है कि बच्चे आज भी गांधी टोपी पहनकर गर्व महसूस करने की बात करते हैं. संभाग के सबसे पुराने स्कूल टीचर बताते हैं कि सभी छात्र स्वेच्छा से इस परंपरा का पालन कर रहे हैं।

आज भी इस स्कूल में रखा है 130 साल पुराना रिकॉर्ड…..
इसकी स्थापना 1892 में हुई थी। उस समय इस स्कूल को एसबीएस स्कूल के नाम से जाना जाता है। स्कूल की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां पर 1 जनवरी 1892 से अब तक के सारे विद्यार्थियों के शाला के प्रवेश के पूरे रिकार्ड को भी संभालकर रखा गया है। आजादी के बाद इस स्कूल में विद्यार्थियों को चरखे से सूत कातना भी सिखाया जाता था। जो 1947 से 1967 तक तो चलता रहा।

शैक्षणिक गुणवत्ता के मामले में भी यह स्कूल पीछे नहीं रहा। यहां अध्ययन करने वालों छात्रों में डॉक्टर, वकील, इंजीनियर और सफल व्यवसायी सहित अनेक शख्सियत शामिल हैं। स्कूल के पुराने बच्चों की माने तो गांधी टोपी लगाना यहां कभी भी मजबूरी नहीं रही। एक जुनून हुआ करता था।