महेश्वर का गोबर गणेश मंदिर , गोबर गणेश मंदिर में होती है हर मनोकामना पूरी
राहुल शर्मा इंदौर -ब्यूरो महेश्वर शहर के बीचों बीच स्थित गोबर गणेश मंदिर दूरदराज के क्षेत्रों से आने वाले श्रृद्धालुओं की आस्था का केंद्र है , मंदिर में विराजित दक्षिण मुखी भगवान गणेश जी की प्रतिमा करीब 900 साल पुरानी है…
22 अगस्त को गणेश चतुर्थी है। पुरे भारत में गणेश जी के आगमन की तैयारियां जोरो – शोरों पर है । पिछले कई वर्षो से इको फ्रेंडली गणपति काफी चर्चाओं में है । हर कोई अपने घर-मंदिर में इको फ्रेंडली गणपति जी की ही स्थापना कर रहा है। आज हम आपको बताएंगे महेश्वर के नर्मदा तट पर विराज रहे इको फ्रेंडली गणपति जी के बारे में । यह गणपति इसलिए भी खास हैं क्योंकि ये गोबर के बने हैं और इन्हें गोबर गणेश कहा जाता है । पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण गोबर गणेश मंदिर अपनी पृथक विशेषता के कारण श्रद्धालुओं की आस्था का केद्र है । मंदिर के पुजारी पं. मंगेश जोशी ने बताया कि यहां की प्रतिमा वर्षों प्राचीन होकर गोबर से निर्मित है । पं. जोशी ने बताया कि नारद पुराण में वर्णन आता है कि गोबर में लक्ष्मी का वास होने से यहां के गणेशजी की उपासना अनंत फलदायी है । ‘महोमूला धारे’ इस प्रमाण से प्रकृति के मूलाधार भूतत्व रूप में श्री गणेशजी सर्व पूजित हैं। भाद्रपद चतुर्थी के पूजन के लिए हमारे पूर्वज गोबर मिट्टी से ही गणपति का बिंब बनाते थे। आज भी स्थापित यह प्रतिमा श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है । मंदिर में गणेशत्सव में कन्या भोज, यज्ञ, पूजन आदि धार्मिक आयोजन होते हैं ।
गोबर गणेश मंदिर में गणेश की जो प्रतिमा है, वह पूर्ण रूप से इको फ्रेंडली है। शुद्ध रूप से गोबर की बनी हुई है। इस मूर्ति में 70 से 75 फीसदी हिस्सा गोबर है और इसका 20 से 25 फीसदी हिस्सा मिट्टी और दूसरी सामग्री है। मुख्य रूप से गोबर से मूर्ति निर्माण की वजह से ही इस मंदिर का नाम गोबर गणेश पड़ा।
‘श्री गोबर गणेश मंदिर जिर्णोद्धार समिति’ इस मंदिर का देखभाल कर रही है। विद्वानों के अनुसार मिट्टी और गोबर की मूर्ति की पूजा पंचभूतात्मक होती है और गोबर में लक्ष्मी जी का वास होता है इसलिए जो भी इस मंदिर मैं आता है उसे ‘लक्ष्मी तथा ऐश्वर्य’ की प्राप्ति होती है।
भाद्रपक्ष शुक्ल चतुर्थी के दिन इस मंदिर में पूजा अर्चना का विधान है। पूजन के लिए गोबर या मिट्टी से ही गणपति का बिम्ब बनाकर पूजा की जाती है। आज भी यह प्रथा प्रचलित है। शोणभद्र शीला या अन्य सोने चांदी से बने बिम्ब को पूजा में नहीं रखते क्योंकि ऐसा माना जाता है की गोबर में लक्ष्मी का वास होता है।
इसी प्रकार गोबर एवं मिट्टी से बनी गणेशप्रतिमाओं को पूजा में ग्रहण करते हैं ।
महेश्वर का गोबर गणेश मंदिर पहली नजर में देशभर में स्थित अपनी ही तरह के हजारों गणेश मंदिरों की ही तरह है । लेकिन इस मंदिर में गोबर से निर्मित गणेश और इस मंदिर का गुंबद जो आम हिन्दू मंदिरों की तरह नहीं है अपनी तरफ आकर्षित जरूर करता है। एक खास बात और, स्थानीय लोगों की इस मंदिर में आस्था किसी का भी ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर सकती है । इसलिए नर्मदा के किनारे निमाड़ क्षेत्र में कभी जाएं तो महेश्वर का गोबर गणेश मंदिर देखना ना भूलें ।