आइए आज आपको लेकर चलते हैं धूनीवाले दादा जी के दरबार मे                                                                                                  भारत के बड़े संतों में आता है खंडवा के दादाजी धूनीवालों का नाम.. गुरुपूर्णिमा पर तीन दिन का लगता है मेला, पांच लाख भक्त आते हैं यहां
खंडवा. भारत के बड़े संतों के बारे में हम जब भी बात करते हैं तो खंडवा स्थित धूनी वाले दादाजी का नाम जरुर आता है। ये एक ऐसे संत थे जिन्हे इनके भक्त स्वयं शिव का अवतार मानते हैं। आज भी इनके भक्तों के बीच दादाजी के द्वारा किए जाने वाले चमत्कारों के किस्से बहुत प्रसिद्ध हैं। गुरुपूर्णिमा पर तीन दिन के मेले में देश-विदेश से 5 लाख श्रद्धालु इनके दर्शन के लिए खंडवा पहुंचते हैं। धूनीवाले दादाजी के बारे में ये कोई भी नहीं जानता कि इनका जन्म कहां और कब हुआ था। लेकिन, इनसे जुड़ी एक प्रसिद्ध कहानी है, जिसमें मां नर्मदा ने खुद धूनीवाले दादाजी को भगवान शिव का अवतार बताया था।
देते थे गाली, मारते थे डंडे से
दादाजी का जनकल्याण करने का तरीका बहुत ही अनूठा था। वे अपने अनुयायियों में से किसी-किसी के साथ बहुत बुरा सलूक किया करते थे। उनकी आलोचना करते थे साथ ही छड़ी से पिटाई भी लगाते थे। हालांकि उनके भक्त इसे एक सम्मान मानते थे क्योंकि दादाजी हर किसी के साथ ऐसा व्यवहार नहीं करते थे। लेकिन, कुछ भाग्यशालियों के साथ ही वे ऐसा व्यवहार किया करते थे।
महान संत को हुआ था सबसे पहले साक्षात्कार
18वीं सदी में एक बड़े साधु गौरीशंकर महाराज अपनी टोली के साथ नर्मदा मैया की परिक्रमा किया करते थे। वह शिव के बड़ भक्त थे। उन्होंने जब नर्मदा परिक्रमा पूरी की तब मां नर्मदा ने उन्हें दर्शन दिए। उन्होंने भगवान शिव के दर्शन की लालसा मां नर्मदा के सामने रखी। तब, मां नर्मदा ने कहा था कि तुम्हारी टोली में ही केशव नाम के युवा के रूप में भगवान शिव स्वयं मौजूद हैं। गौरीशंकर महाराज तुरंत ही दौड़े-दौड़े उनके पीछे भागे और केशव में उन्हें भगवान शिव का रूप दिखाई दिया। बस इसी दिन से दादाजी की पहचान हुई। दादाजी धूनीवाले के देश-विदेश में कई अनुयायी हैं।
दिगंबर शरीर और हाथ में रखते थे डंडा दादाजी अपने भक्तों की हर मुराद पूरी करते लेकिन स्वयं बड़ी ही सादगी से जीवन व्यतीत करते थे। उनके साथ में उनकी सेवा के लिए छोटे दादाजी रहते थे। वे जहां भी रहते वहां पर धूनी रमाते थे। आपको बता दें कि हिंदू धर्म में साधु-संतों के द्वारा ध्यान लगाने के लिए जलाई जाने वाली पवित्र आग को धूनी कहते हैं। जहां इनका आश्रम बना है वहां पर इनके द्वारा जलाई गई धूनी जस की तस आज भी जल रही है। दादाजी हमेशा अपने हाथ में डंडा रखते थे। इसलिए इनके कुछ भक्त इन्हें डंडेवाले दादाजी भी कहते हैं। दादाजी ने 19वीं और 20वीं में मध्यभारत में खूब यात्राएं की हैं।
खंडवा में ली अंतिम समाधि
वैसे तो दादाजी ने खूब यात्राएं की है लेकिन उनका अधिकांश कर्मक्षेत्र खंडवा ही रहा है। दादाजी ने 1930 में खंडवा में ही अंतिम समाधि ली। उनके भक्तों ने आज उनकी समाधि स्थल पर एक मंदिर का निर्माण किया है। 84 खंबों के मार्बल के मंदिर का निर्माण प्रस्तावित है। हर गुरुपूर्णिमा को यहां पर एक भव्य मेले का आयोजन होता है। दादाजी की जलाई हुई धूनी आज भी इस स्थान पर जल रही है।
भक्तों को मिलती है टिक्कड़ प्रसादी
दादाजी धाम आने वाले भक्तों को प्रसादी के रूप में टिक्कड़, बूंदी मिलती है। भक्त बड़ी ही आस्था के साथ ये प्रसादी ग्रहण करते हैं। गुरुपूर्णिमा पर देशभर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए शहर मेजबान बन जाता है और 200 से ज्यादा भंडारों में शाही हलवा से लेकर पानीपूरी और दाल-बाटी चूरमा से लेकर सब्जी-पुरी तक सबकुछ फ्री में मिलता है।