आशीष रावत…..उज्जैन स्थित सिद्धवट मंदिर को लेकर ऐसी धार्मिक मान्यता है कि जब माता पार्वती ने यहां तपस्या की थी तब उन्होंने ही इस सिद्धवट को लगाया था । उज्जैन का सिद्धवट भी प्रयाग के अक्षयवट, वृन्दावन के वंशीवट और नासिक के पंचवट के समान अपनी पवित्रता के लिए प्रसिध्द है

उज्जैन ऐसी मान्यता है कि पवित्र नदी शिप्रा के तट पर स्थित सिध्दवट घाट पर अन्त्येष्टि-संस्कार सम्पन्न किया जाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है । स्कन्द पुराण में इस स्थान को प्रेत-शिला-तीर्थ कहा गया है । इसके अलावा नाथ संप्रदाय में भी इसे पूजा का स्थान माना गया है । मुगल शासन काल में इस सिद्धवट को नष्ट करने के कई बार प्रयास किए गए । पुरातात्विक दृष्टिकोण से भी उज्जैन का सिद्धवट मंदिर काफी महत्व रखता है क्योंकि शिप्रा के तट पर स्थित मंदिर के पास नदी में बड़ी तादाद में कछुए पाए जाते हैं । इसके अलावा उज्जैन से प्राप्त हुए प्राचीन सिक्कों में भी नदी के साथ कछुओं के चित्र अंकित मिलते हैं। ऐसे में इस धारणा को बल मिलता है कि यहां कछुए प्राचीन काल से ही रहे होंगे। उज्जैन के भैरवगढ़ के पूर्व में शिप्रा नदी के तट पर स्थित सिद्धवट को शक्तिभेद तीर्थ के रूप में भी जाना जाता है ।

इन तीन चीजों की मिलती है यहां सिद्धि…..
इस जगह पर आपको तीन तरह की सिद्धि मिलती है जिनका नाम है संतति संपत्ति और सद्‍गति। इन तीनों मन्नतों को पूरा करने के लिए यहां पर पूजन किया जाता है। संतति अर्थात पुत्र की प्राप्ति के लिए उल्टा सातिया ( स्वास्तिक ) बनाया जाता है । संपत्ति के लिए वृक्ष पर रक्षा सूत्र बाँधा जाता है । सद्‍गति अर्थात पितरों के लिए अनुष्ठान किया जाता है । ये वृक्ष तीनों प्रकार की सिद्धि देता है इसीलिए इसे सिद्धवट कहा जाता है।

ऐसी है मान्यता…..
स्कंद पुराण के अवंतिका खंड में इस बात का उल्लेख किया गया है कि उज्जैन के सिद्धवट क्षेत्र में गणेश पुत्र भगवान कार्तिकेय का मुंडन संस्कार हुआ था । यहां का इतिहास बहुत पुराना है । यहां विराजित ज्योतिर्लिंग बाबा महाकाल की भस्म आरती की जाती है । यहां के बारे में ऐसा भी कहा जाता है कि जब माता सती के आत्मदाह के बाद शिवजी वैरागी हो गए थे और उन्होंने पूरे शरीर पर भस्म रमा ली थी । जिसके बाद से ही उनकी पूजा महाकालेश्वर के रूप में की जाती है ।

कटवा दिया था सिद्धवट….
मुगल काल में बादशाहों ने इस क्षेत्र के धार्मिक महत्व को खत्म करने के लिए बरगद के इस वृक्ष को नष्ट करने के लिए उस पर लोहे के बहुत मोटे-मोटे तवे जड़वा दिए थे। इसके बाद भी इस वृक्ष के फिर से अंकुर फूट निकले और आज भी ये वृक्ष हरा-भरा है। लोग यहां पर अपनी मन्नतों को पूरा करने के लिए आते हैं।