टी जैन छत्तीसगढ़ ब्यूरो – छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव के एक छोटे से कस्बे डोंगरगढ़ में बिराजमान माँ बम्लेश्वरी देवी के मंदिर से आज तक कोई खाली नहीं लोटा , भक्त अपनी मनोकामनाएं लेकर माँ के दर जाते हैं और झोली भरकर खुशियां लाते हैं , मंदिर का इतिहास करीब दो हजार साल पुराना है, माँ बम्लेश्वरी को नवरात्रि के तीसरे दिन चंद्र घंटा के रूप में पूजा जाता है …
राजनांदगांव डोंगरगढ़ के मां बम्लेश्वरी मंदिर की ख्याति देश-विदेश तक है । इस शक्तिपीठ का इतिहास करीब 2200 साल पुराना है । डोंगरगढ़ पूर्व में वैभवशाली कामाख्या नगरी कहलाती थी,जो कालांतर में डोंगरी व फिर डोंगरगढ़ कहलाई । पहाड़ी पर करीब 16 सौ फीट की ऊंचाई पर विराजित मां बम्लेश्वरी के दर्शन के लिए लगभग 11 सौ सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। नीचे छोटी बम्लेश्वरी हैं, जिन्हें बड़ी बम्लेश्वरी की छोटी बहन कहा जाता है ।
विशेषता : नीचे छीरपानी जलाशय है, जहां बोटिंग होती है। रोपवे भी है ।
वास्तुकला : यहां की मूर्तिकला पर गोंड़ संस्कृति का पर्याप्त प्रभाव दिखता है। गोंड़ राजाओं के किले के प्रमाण भी यहां मिलते हैं ।
मंदिर से जुड़े आयोजन – चैत्र और शारदीय नवरात्रि पर यहां हजारों की संख्या में मनोकामना ज्योति प्रज्वलित किए जाते हैं। विदेशी श्रद्धालु भी यहां ज्योति कलश स्थापित कराते हैं ।
– राजनादगांव से 35 व राजधानी रायपुर से यह 105 किलोमीटर दूर है । हावड़ा-मुंबई रेलमार्ग से भी यह जुड़ा हुआ है।
मां दुर्गा की तीसरी शक्ति हैं चंद्रघंटा – नवरात्रि में तीसरे दिन इनकी आराधना की जाती है । देवी का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है । इनकी कृपा से साधक को अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं । दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है और कई तरह की ध्वनियां सुनाई देने लगती हैं ।
पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता ।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता ।।
इनके मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चंद्र है इसीलिए इन्हें चंद्रघंटा कहा गया है । इनके शरीर का रंग सोने के समान चमकीला है । माँ देवी के दस हाथ हैं । वे खड्ग और अन्य अस्त्र-शस्त्र से विभूषित हैं ।