टी जैन ब्यूरो छग – दंतेवाड़ा -गणेश जी के एक दंत कहलाने की कहानी इसी बैलाडीला पहाड़ी से जुड़ी हुई है। कहते हैं यहां परशुराम और गणेश जी में युद्ध हुआ था और परशुराम के फरसे के प्रहार से गणेश जी का एक दांत टूटकर यहीं गिर गया था। हरी-भरी वादियों में ढोलकल की पहाड़ी पर स्थित भगवान गणेश जी की ये प्राचीन मूर्ति आज भी उस प्राचीन समय की यादें ताजा कर देती है ….
प्रथम पूज्य गजानन को कई नामों से जाना जाता हे। जिसमें एकदंत बप्पा का काफी प्रसिद्ध नाम है । गणेश चतुर्थी के पावन त्योहार पर देशभर के गणेश मंदिरों में भक्तों का तांता लगा हुआ लेकिन क्या आप जानते हैं कि छत्तीसगढ़ के नक्सल इलाके दंतेवाड़ा में एक पहाड़ी पर विराजमान बप्पा की महिमा पूरे देश में फैली हुई है । लोगों का मानना है कि ढोलकल पहाड़ी पर मौजूद गणेश भगवान की ये प्रतिमा 1100 साल पुरानी है । मान्यताओं की मानें तो यहां पर परशुराम और गणपति में युद्ध हुआ था। उस युद्ध में गणेश जी का एक दांत टूट गया था । जिसके कारण बप्पा एकदंत कहलाए । परशुराम के फरसे से गजानन का दांत टूटा इसलिए पहाड़ी के शिखर के नीचे के गांव का नाम फरसपाल रखा गया । इतना ही नहीं कई लोगों का मानना है कि गणपति की प्रतिमा ढोलक के आकार की तरह दिखती है । जिस कारण से इस पहाड़ी का नाम ढोलकल पड़ा । दंतेवाड़ा से करीब 22 किमी दूर ढोलकल पहाड़ी पर बड़े आराम की मुद्रा में विराजे गणेश जी की प्रतिमा है ।प्रतिमा के सामने खड़े होने पर चारो ओर सैकड़ों फीट गहरी खाई और घना जंगल दिखता है। ये प्रतिमा कब और कैसे यहां आई किसी को पता नहीं पुरातत्ववेत्ताओं की मानें तो ये प्रतिमा 11वीं सदी की है। तब यहां नागवंशीय राजाओं का शासन था। प्रतिमा में गणेश जी के पेट पर नाक का चित्र है । ये तथ्य इस बात को और मजबूती देता है कि ये प्रतिमा नागवंशीय राजाओं के काल का है । पर यहां कैसे पहुंची और क्यों इसके बारे में अभी कोई साक्ष्य नहीं है ।
चूंकि गणेश जी का आकार गोल-मटोल ढोलक जैसे है इसलिए इनका नाम भी ढोलकल गणेश जी है । ये प्रतिमा करीब 100 किलो की है जो ग्रेनाइट स्टोन से बनी है ।यह समुद्र तल से 2994 फीट ऊंची चोटी पर स्थित है ।
यहां पहुंचना है बहुत दुर्गम—
गणेश का दर्शन करना काफी दुर्गम है । यहां आने के लिए दंतेवाड़ा से 18 किमी दूर फरसापाल जाना पड़ता है।उसके बाद कोतवाल पारा होते हुए जामपारा पहुंचकर गाड़ी वहीं पार्क करनी होती है । यहां स्थानीय आदिवसियों के सहयोग से पहाड़ी पर 3 घंटे की दुर्गम चढ़ाई के बाद पहुंचा जा सकता है । बारिश के दिनों में रास्ते में पहाड़ी नाले बहने लगते हैं जिससे ये मार्ग और दुर्गम हो जाता है ।