आशीष रावत….महाकाल की नगरी में भक्तों का जमावड़ा, नए साल की पहली भस्मारती में उमड़ी भीड़

दुनियाभर में नए साल के पहले दिन की शुरुआत लोग अलग-अलग अंदाज में करते हैं लेकिनधार्मिक नगरी उज्जैन में श्रद्धालु हर नए काम की शुरुआत बाबा महाकाल के चरणों का आशीष लेकर करते हैं। साल के पहले दिन लाखों भक्तों ने महाकाल मंदिर में जाकर भक्तिभाव मे लीन होकर पहले दिन की शुरूआत की। यहां नववर्ष के पहले दिन मंदिर में लाखो की संख्या में भक्तो ने बाबा महाकाल के दर्शन कर अपने नए साल की शुरूआत कर सफलता और सुख शांति की प्रार्थना की।

नववर्ष पर रविवार को बड़ी संख्या में पंहुचे श्रद्धालुओं ने महाकाल के दर्शन कर सालभर के लिए आशीर्वाद मांगा। भूतभावन बाबा महाकाल को कालों का काल कहा जाता है, इसलिए वे काल के अधिष्ठाता है, लिहाजा नया साल अच्छा बीते, इसी कामना के साथ तमाम भक्त महाकाल के दरबार से नए साल की शुरूआत करते दिखे। इस अवसर पर श्रद्धालुओं को नए साल का जश्न मनाने का मौका भी मिल गया। वैसे नववर्ष के अवसर पर महाकाल मंदिर में दर्शनार्थियों की संख्या में वृद्धि को ध्यान में रखते हुए महाकाल मंदिर में किसी भी दर्शनार्थी को गर्भगृह एवं नंदीहॉल में प्रवेश नहीं दिया गया। सभी दर्शनार्थियों को नंदी हॉल के पीछे लगे रैलिंग से ही भगवान महाकाल के दर्शन हुए।

गर्म जल से स्नान फिर हुआ पंचामृत पूजन

भगवान महाकाल के दरबार में नववर्ष की सुबह अद्भुत भस्म आरती से पहले भगवान महाकाल को गर्म जल से स्नान कराया गया। इसके बाद दूध, दही, शहद, शक्कर और फलों के रस से भगवान का पंचामृत पूजन हुआ। भगवान महाकाल को पूजन के बाद सूखे मेवे और भांग से सजाया गया। राजाधिराज भगवान महाकाल ने नववर्ष की सुबह आकर्षक स्वरूप में दर्शन दिए।

भस्म आरती का महत्व….
महाकाल की विभिन्न पूजाओं तथा आरतियों में भस्म आरती का अपना अलग महत्व है। यह अपने तरह की एकमात्र आरती है जो विश्व में सिर्फ महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन में ही की जाती है। हर शिवभक्त को अपने जीवन में कम से कम एक बार भगवान महाकालेश्वर की भस्म आरती में जरूर शामिल होना चाहिए। भस्म आरती भगवान शिव को जगाने, उनका श्रृंगार करने तथा उनकी प्रथम आरती करने के लिए किया जाता है। यह आरती प्रतिदिन सुबह चार बजे, भस्म से की जाती है। भोर में चार बजे भगवान का जलाभिषेक किया जाता है। इसके बाद श्रृंगार और उसके बाद ज्योतिर्लिंग को भस्म से सराबोर कर दिया जाता है। शास्त्रों में चिता भस्म अशुद्ध माना गया है। चिता भस्म का स्पर्श हो जाये तो स्नान करना पड़ता है परन्तु भगवान शिव के स्पर्श से भस्म पवित्र होता है क्योंकि शिव निष्काम हैं। उन्हें काम का स्पर्श नहीं है। अनादिकाल से ही महाकाल मंदिर में भस्म रमाने की परंपरा चली आ रही है।